What is Religion - जो राजस, तामस और सात्त्विक से विपरीत अर्थात झूठ, द्वेष, ईर्ष्या और छल कपट के साथ अपने कार्य करते है, वे क्या है अब आप शायद समझ सकते
धर्म, किसी परलौकिक शक्ति में विश्वास या उससे जुड़े रीति-रिवाज़, परंपरा, पूजा-पद्धति, और दर्शन नहीं है। जैसा की इंटरनेट पर भिन्न भिन्न स्रोतों के माध्यम से बताया गया है।
धर्म क्या है और इस बारे में, मैं क्या सोचता हूँ इसे आप मेरे इस ब्लॉग पोस्ट से जान सकते है।
अब अगर धर्म का शाब्दिक अर्थ समझे तो संधि-विच्छेद करने से ज्ञात होता है कि धर्म शब्द 'धृ' धातू से बना है, जिसका मतलब है 'धारण करने योग्य'. जो आचरण, विचार, मूल्य, सिद्धांत, और नियम सत्य के साथ धारण करने योग्य हों, उन्हें धर्म कहते हैं।
धर्म कितने प्रकार का होता है?
धर्म स्थिति और स्थान के आधार पर भिन्न भिन्न हो सकता है, लेकिन उसे धर्म तभी तक कहा जा सकता है जब तक उसका आचरण सत्य के साथ होता है। अतः स्वधर्म अर्थात स्वयं का धर्म ही सबसे प्रथम धर्म है।
लेकिन ये स्वधर्म क्या है?
यह दो प्रकार का होता है -
- सकाम धर्म अर्थात भौतिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए (स्वार्थ) बिना ईर्ष्या, द्वेष के, सत्य के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करना
- निष्काम धर्म अर्थात बिना किसी स्वार्थ के सत्य के साथ कर्तव्यों का पालन करना
शास्त्रों में दिया ज्ञान भी तीन प्रकार का होता है -
श्रीमद भगवद गीता, अध्याय 18 में भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं बताते है -
पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्।
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्।।18.21।।
जो ज्ञान अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण प्राणियों में अलग-अलग अनेक भावों को अलग-अलग रूप से जानता है, उस ज्ञान को तुम राजस समझो।
यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम्।
अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम्।।18.22।।
किंतु जो (ज्ञान) एक कार्य रूप शरीर में ही सम्पूर्ण के तरह आसक्त है तथा जो युक्तिरहित, वास्तविक ज्ञान से रहित और तुच्छ है, वह तामस कहा गया है।
नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।
अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते।।18.23।।
जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तृत्वाभिमान से रहित हो तथा फलेच्छा रहित मनुष्य के द्वारा बिना राग-द्वेष के किया हुआ हो, वह सात्त्विक कहा जाता है।
इस प्रकार से लोग अपने अपने धर्मो का अपने ज्ञान के अनुसार पालन करते है। लेकिन जो राजस, तामस और सात्त्विक से भी विपरीत अर्थात झूठ, द्वेष, ईर्ष्या और छल कपट के साथ अपने कार्य करते है, वे क्या है अब आप शायद समझ सकते है।
ध्यान रखे सात्त्विक धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है और वह स्वयं भगवान् श्रीनारायण का स्वरुप है। इसलिए जब जब इस धर्म की हानि होती है तब तब वे स्वयं इस पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में प्रकट होकर लोगो का कल्याण करते है।
जय श्री राम, जय श्री हनुमान, हर हर महादेव।
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