भंडारा बांटने से पहले जयकारा बुलवाना। सही या गलत? गाय की रोटी, भैंस को खिलाना कदापि उचित नहीं Asking people to chant Jaikara before distributing foo
आजकल दीपावली के समय सोशल मीडिया में एक अलग ही बहस चल रही है। कि भंडारा देने से पहले श्री राम का बुलवाना। सही या गलत?
इसलिए लंगर या भंडारा का आयोजन करने से पहले विचार इन बिंदुओं पर विचार अवश्य करना चाहिए। आगे आप जब भी भंडारा करते रहते है तो आपको कुछ सावधानियाँ अवश्य रखनी चाहिए। हाल ही में सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए है जो भंडारा में भगवान् का प्रसाद प्राप्त भी कर रहे है और उसी प्रसाद और आराध्य का अपमान भी कर रहे है।
एक वायरल वीडियो -
इसमें दिख रहा है, एक यूटूबर जब भंडारा खाने के लिए गया तो उससे जय श्री राम बोलने को कहा गया। तो वह मना करने लगता है। यह देखकर भंडारा करने वाले महाशय भड़क जाते है। और कहते है कि राम का खाकर, राम का विरोध करोगे क्या ?
मुंबई के अंकल को राम राम
— Kreately.in (@KreatelyMedia) October 30, 2024
सब हिंदुओं को हिंदू बनना होगा
🏆⚔️🪔
pic.twitter.com/xenBkEAS6Q
दूसरा वायरल वीडियो -
इसमें वही महाशय कहते हुए दिख रहे है कि जिसको राम नहीं बोलना वो लाइन में खड़ा नहीं हो। इतने में एक महिला आती है, चिल्लाने लगती है कि में जय श्री राम नहीं बोलूंगी। तो श्रीमान कहते है, चलो हटो यहाँ से।
दिक़्क़त है तो लाइन में मत लगो, मत आओ ऐसे भंडारे में।
— Surya Pratap Singh IAS Rtd. (@suryapsingh_IAS) October 30, 2024
मुफ़्तख़ोरी, भीख किसी का हक़ नहीं।
राम का देश है, तो श्री राम की जय जयकार तो करनी होगी। pic.twitter.com/zXkomIGwFx
हालाँकि मेरे पास पूरा वीडियो या पूरी जानकारी नहीं है। फिर भी जितना आपने देखा है उसी पर अपने विचार प्रकट करता हूँ। आशा करता हूँ आप मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
लंगर या भंडारा क्या है?
लंगर या भंडारा भगवान् का प्रसाद होता है, जो बाँटने वाले और प्राप्त करने वाले दोनों का उद्दार करता है, कलयुग में अगर सात्विक बुद्धि उत्त्पन्न हो जाये तो भी उसे उद्दार कहना और भगवान् की कृपा होना कहा जा सकता है।
जिसके पाने और बाटने के कुछ नियम हो सकते है। जैसे कि -
भंडारा का भगवान् का प्रसाद सिर्फ खड़े होकर, अपने मस्तक पर लगाकर प्राप्त किया जाता है, अर्थात साक्षात् भगवान् के समान सम्मान करना आवश्यक है।
लंगर या भंडारा कितना प्राप्त करे? -
भंडारे को सिर्फ प्रसाद के रूप में लिया जाता है, अर्थात पेट नहीं भरना होता।
अगर आप भूखे है, गरीब है तब आप ले सकते है। लेकिन ध्यान रहे इस ब्राह्माण में कुछ भी बिना कर्म के नहीं मिलता। पेट भरने पर इसके बदले में आपके पास का पुण्य धन, भंडारा बाँटने वाले के पास चले जाते है।
लंगर या भंडारा सिर्फ प्रसाद के रूप में प्राप्त करे, इसे भंडारा प्राप्त करने और बाँटने वाले दोनों पर भगवान् की कृपा होती है। क्युकी आपने उसका सम्मान किया है। उसका मान रखा है।
इसका उदाहरण सत्य नारायण भगवान की कथा में मिलता है कि कुछ चरवाहे जंगल में सत्य नारायण भगवान की कथा कर रहे थे, उन्होंने प्रसाद बांटा, राजा को दिया, लेकिन राजा ने उन्हें छोटे लोग समझकर प्रसाद ग्रहण नहीं किया। उसका राज्य वैभव नष्ट हो जाता है।
लेकिन जो लोग ऐसी भावना रखते है कि माता लक्ष्मी अन्नपूर्णा ने स्वयं भगवान को भोग लगाया है, और आपके उद्गार के लिए आपको निमित्त बनाया गया है। आप उसे अपने सिर पर धारण करके उसे पाये न की खाये तो ऐसा प्रसाद कल्याण करने बाला होता है।
लंगर या भंडारा किसको बांटे -
लंगर या भंडारा उसी को देना चाहिए जो उसका मान रखे, पहले उसको सिर पर लगाए, हाथ जोड़े, जिसका प्रसाद है उसकी स्तुति करें या जयकारा बोले और फिर प्राप्त करे। उसे पेट भरने का साधन या भोजन न समझे।
अधर्मी लोगो को प्रसाद बांटने से आपको कई अपराध और दोष लग सकते है जैसे कि -
- जो लोग भंडारा प्राप्त करके अपनी पत्तल कही भी फेक देते है, जो बाद में लोगो के पैरो में आती है, उसका दोष आपको और उसको दोनों को लगेगा। क्युकी दोनों ने अपने धर्म का पालन नहीं किया।
- जो लोग भंडारा प्राप्त करके अपनी पत्तल में प्रसाद छोड़ देते है, उसका दोष भी दोनों को लगेगा।
- जो लोग भंडारा या प्रसाद लेते समय उस प्रसाद के इष्ट और आराध्य का सम्मान नहीं करते है, वे भी पाप का भोजन करते है।
- जो लोग भंडारा या प्रसाद लेते समय भगवान् की निंदा करते है तो उसका भयानक अपराध लग सकता है। जैसे शिव निंदा सुनने के कारण माता सती ने शिव अपराध से बचने के लिए अपने शरीर को भष्म कर दिया था।
क्या लंगर या भंडारा घर ले जा सकते है? -
यह ले जाने वाले के भाव पर निर्भर करता है। जिस व्यक्ति को प्रसाद मिला है, सिर्फ उसी मात्रा में से कुछ भाग सिर पर लगाकर स्वयं प्राप्त करे, और उसी मात्रा में से बचाकर उसी सम्मान के साथ अपने परिवार को बांटे। ऐसा करने से वह प्रसाद आपका और आपके परिवार के पाप ताप को नष्ट करेगा।
लेकिन अगर आप परिवार को प्रसाद देने के लिए अलग से अतिरिक्त प्रसाद ले रहे है तो आप किसी न किसी के प्रारब्ध को छेड़ रहे है। जो की धर्म संगत प्रतीत नहीं होता। ऐसा प्रसाद आपके भाग्य के पुण्य उस बाँटने वाले के भाग्य में जोड़ देगा। अर्थात आपको उसकी कीमत चुकानी होगी।
जैसे मानव शरीर की पुष्टि के लिए जैसे भौतिक धन रुपया पैसा की आवश्यकता होती है, ठीक वैसे ही आत्मा की पुष्टि और शरीर के माध्यम से धर्म के कर्म करने के लिए पुण्य धन की आवश्यकता होती है। इसलिए पुण्य को भी पुण्यधन कहा जाता है।
अतः गाय की रोटी, भैंस को खिलाना कदापि उचित नहीं।
अतः भंडारा बांटने से पहले, प्रसाद प्राप्त करने वाले की श्रध्दा को अवश्य जांचना चाहिए। जैसे कि लाइन लगते समय सबको तिलक लगाना, उनसे जयकारा लगवाना।
अब मुझे आशा है कि आप स्वयं बता देंगे कि भंडारा बांटने से पहले जयकारा बुलवाना। सही है या गलत?
What I think में मेरे द्वारा दी गयी आपको ये जानकारी कैसी लगी।
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