जानिये कौन है तंवर या तोमर क्षत्रिय राजवंश? तोमरों कि उत्पत्ति किस प्रकार हुई और ग्वालियर के तौअरघार और दिल्ली के तोमर राजाओं के साथ उनका कया सम्बन्ध था।
तोमरों कि उत्पत्ति किस प्रकार हुई और ग्वालियर के तौअरघार और दिल्ली के तोमर राजाओं के साथ उनका कया सम्बन्ध था। (सम्बन्ध में आगे के लेख में बतायूंगा). इन्होंने वर्तमान दिल्ली की स्थापना दिहिलिका के नाम से की थी। अन्य राजवंशों कि उत्पत्ति के समान ही तोमरों कि उत्पत्ति भी विवाद से परे नहीं है। जिस प्रकार भारतीय इतिहास में राजपूर्तों को उत्पत्ति के विभिन्न वृतान्त मिलते है ठीक उसी प्रकार तोमरों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न उल्लेख हैं। भारत के मध्यकालीन इतिहासकारों ने तोमर वंश की उत्पत्ति सोमवंश से मानी है। इसी सोमवंश में हस्तिनापुर के शान्तनु राजा उत्पन्न हुए थे। शान्तनु के एक वंशज दुर्योधन का अधिकार हस्तिनापुर पर हुआ तथा युधिष्ठिर का अधिकार इन्द्रप्रस्थ पर हुआ। युधिष्ठिर के भाई अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के कुल में ही परीक्षित हुए और परिक्षित के वंश में ही तोमर हुए। इस प्रकार भारतीय इतिहास परम्परा में तोमरों का सम्बंध महाभारत काल के द्धापर युग से सोमवंशी शान्तनु और पाण्डव के कुल से जोड़ा गया हें। तोमर अथवा तवंर एक जाट / ठाकुर या क्षत्रिय / राज वंश है जो चंद्रवंशी क्षत्रिय कहे जाते हैं।
चन्दबरदाई के पृथ्वीराज रासों में राजपूतों के जिन 36 कुलों की कल्पना की गई थी उनमें तोमरों को दिल्ली के राजा के रूप में स्थान दिया गया था।. विक्रम संबत 1688 अर्थात सन् 1631 ई0 के रोहिताश्वगढ़ के मित्रसेन के शिलालेख में तोमरों को पाण्डवर्बंशी तथा सोमवंशी कहा गया है। मित्रसेन स्वयं तोमर था ओर ग्वालियर की तोमर राजवंश (Tomar Dynasty) शाखा का था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसे अपने पूर्वजों क॑ कुल का ज्ञान रहा होगा।
खड्गराय तोमर राजाओं का प्रामाणिक इतिहासकार माना जाता है। शाहजहां के राज्यकाल में उसने गोपाचल आख्यान लिखा था। उसने तोमरो की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए लिखा था -
अब सुनियौ तोंबर उत्पत्ति, छत्रिन में सो उत्तम जाति
कछ कछु कथा हेतु श्रुत भयो, सोमवंश अब वरन न लयो।।
पंडवंस जग तेज निदान, महारज बंसी बरवान
जो कछ सोमवंश नृप कहे, ते हरिवंस कथा में रहे।।
खडगराय के पूर्वज तोमरों के परम्परा से पुराहित चले आ रहे थे। निश्चित ही खडगराय के पास कुछ ऐसे प्रामाणिक दस्तावेज रहे होंगे जिनके आधार पर उसने तोमरों को पाडंववंशी और सोमवंशी लिखा होगा। खडगराय ने अपने ग्रंथ में तोमरों को अत्रि ऋषि से उत्पन्न माना हे
“बरनों कछ सुनी इहि भांति, रिसि अत्रव तनी उत्पत्ति।
स्पष्ट है जिस प्रकार पूर्व मध्यकाल के अन्य राजपूत राजवंश राजवंशो को किसी न किसी ऋषि के साथ जोड़ा गया है। ठीक उसी प्रकार तोमरों को भी ऋषि अत्रि के साथ जोड़ा गया है।
शिलालेखों और तत्कालीन संस्कृत ग्रंथों में तोमरो को तोमर लिखा गया है और हिंदी ग्रंथो में तोमरो को तूवर, तंवर, तोवर, कहा गया है तथा कुछ फ़ारसी ग्रंथो में इनको तूनर या तौर भी लिखा गया है। पश्चिम भारत के जैन विद्वानों ने इनको तुंग लिखा है।
एक तरफ जहां पृथ्वीराज रासों में राजपूतों के कुल ३६ कुलो का उल्लेख मिलता है। वहीं कक्यामखां रासा में जान कवि ने समस्त राजपूत कुलो को साढ़े तीन कुलों में बांटा है।
साढ़े तीन कुली कहे, रजपूतन को जात।
तोहि कहौँ समझाइ के, सुनि ले तिन को बात।
चाहूंवन तुंवर दुतीय, तीजो आहि पंवार।
आधे में सगरे कुली, साढ़े तीन विचार।
इस प्रकार तोमरों को राजपूत कुलों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त था। जिसके कुछ कारण हो सकते है की आज भी इनके अंदर दया, क्षमा, भरोसा, वीरता और बुद्धि ज्यादातर में अच्छी होती है।
आगे के लेख में
चम्बल और दिल्ली के तोमर वंश क्या एक ही है? - Tomar dynasty
यहाँ चंद्रवशी तोमर के बारे में कुछ जरुरी जानकारी या संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -
चन्द्रवंश क्षत्रिय का उद्गम / वंशावली इतिहास -
मनु >> इला | पुरुरवस् | आयु | नहुष | ययाति | पूरु | जनमेजय | प्राचीन्वन्त् | प्रवीर | 11 मनस्यु | अभयद | सुधन्वन् | बहुगव | संयति | अहंयाति | रौद्राश्व | ऋचेयु | मतिनार | तंसु | 43 दुष्यन्त | भरत | भरद्वाज | वितथ | भुवमन्यु | बृहत्क्षत्र | सुहोत्र | हस्तिन् | 53 अजमीढ | नील | सुशान्ति | पुरुजानु | ऋक्ष | भृम्यश्व | मुद्गल | 61 ब्रह्मिष्ठ | वध्र्यश्व | दिवोदास | मित्रयु | मैत्रेय | सृञ्जय | च्यवन | सुदास | संवरण | सोमक | 71 कुरु | परीक्षित १ | जनमेजय | भीमसेन | विदूरथ | सार्वभौम | जयत्सेन | अराधिन | महाभौम | 81 अयुतायुस् | अक्रोधन | देवातिथि | ऋक्ष २ | भीमसेन | दिलीप | प्रतीप | शन्तनु | भीष्म | विचित्रवीर्य | धृतराष्ट्र | 94 पाण्डव | अभिमन्यु | परीक्षित | और जनमेजय
जनमेजय अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे। जनमेजय की पत्नी वपुष्टमा थी, जो काशीराज की पुत्री थी। बड़े होने पर जब जनमेजय ने पिता परीक्षित की मृत्यु का कारण सर्पदंश जाना तो उसने तक्षक से बदला लेने का उपाय सोचा। उन्होंने सर्प यज्ञ कर सर्प प्रजाति को ही समाप्त करने हेतु यज्ञ आयोजित किया, जिसमे भांति भांति के सर्प गिरकर मरने लगे।
वास्तव में अपराधी तक्षक नाग था। क्युकी दुष्ट तक्षक ने कश्यप को रास्ते से ही क्यों लौटा दिया था, जो की राजा परीक्षित का इलाज करने के लिए रस्ते में आ रहे थे। अपराधी तक्षक डर के मारे इन्द्र की शरण में पहुँचा। अंत में अपनी रक्षा न देख इन्द्र ने भी उसका साथ छोड़ दिया। इधर वासुकी ने जब अपने भानजे, जरत्कारु मुनि के पुत्र, आस्तीक से नाना के वंश की रक्षा करने का अनुरोध किया तब वे जनमेजय के यज्ञस्थल में जाकर यज्ञ की बेहद प्रशंसा करने लगे। इससे प्रसन्न होकर राजा ने उनको मुँह-माँगी वस्तु देने का वचन दिया। इस पर आस्तीक ने प्रार्थना की कि अब आप इस यज्ञ को यहीं समाप्त कर दें। ऐसा होने पर सर्पों की रक्षा हुई। नागों ने प्रसन्न होकर आस्तीक को वर दिया कि जो भी इस कथा का स्मरण करेगा- सर्प कभी भी उसका दंशन नहीं करेंगे, और राजा जनमेजय के वंश को भी सर्पो से अभय का वरदान दिया। प्राण जाता देख तक्षक ने भी राजा जनमेजय को यह वचन दिया कि जो भी व्यक्ति जनमेजय का नाम लेगा उन्हें देख सर्प मार्ग बदल देंगे और किन्ही भी स्थितियों में उन्हें नही काटेंगे। यह कथा त्रिवाचा की कथा के नाम से प्रसिद्दहै।
राजचिह्न एवं वंश चिह्न (तोमर राजवंश) -
*गोत्र – व्याघ्रप्रद(वैयासर, व्यास्स्त्र ,बोली अपभ्रसो के कारण*)
सोमवंश वंश की अनेक शाखाएं -प्रशाखाएं होने के बाद भी यह वंश अपना मूलवंश धारण किये हुए है | सोमवंशी क्षत्रियों के दो गोत्र मिलते हैं |
1- व्याघ्रपद -जो सोम वंशी गंगा के पूर्वी तट की तरफ बसे उन्हीं का गोत्र व्याघ्रपद है | वर्तमान में व्याघ्रपद गोत्र के क्षत्रीय विविध जिलों में फैल गए हैं |
2- भारद्वाज - जो सोम वंशी पश्चिम प्रयाग की और बसे उनका गोत्र भारद्वाज है क्यों कि भारद्वाज आश्रम भी उसी क्षेत्र में था |
इष्ट देव - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
कुलदेवता - श्रीकृष्ण, भगवान शिवजी
शाखा – माखधनी,
वंश – चन्द्रवंश ,
कुलदेवी – योगेश्वरी,
देवी – चिल्हासन (वर्तमान में कालका देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनकी चील पक्षी की सवारी है- इनका मंदिर अनंगपुरी दिल्ली में है, यह मंदिर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर (Tomar Dynasty - Shri Anangpal Singh Tomar) ने बनवाया था),
राजचिह्न – गौ बच्छा रक्षा (गाय बछड़ा की रक्षा) – यह राजचिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
वंश वृक्ष चिह्न – अक्षय वट- यह चिह्न प्रयागराज में स्थापित है,
माला – रूद्राक्ष की माला,
पक्षी- गरूड़,
राज नगाड़ा – रंजीत (रणजीत),
तोमर राजवंश (Tomar Dynasty) पहचान नाम- इन्द्रप्रस्थ के तोमर,
राज वंश एवं वंश कुल पूजा- लक्ष्मी नारायण,
आदि खेरा (खेड़ा) (मूल खेड़ा) – हस्तिनापुर,
आदि गद्दी (आदि सिंहासन) – कर्नाटक (तुगभद्रा नदी के किनारे तुंगभद्र नामक स्थान पर महाराजा तुंगपाल) ,
वंश एवं राज शंख – दक्षिणावर्ती शंख,
तिलक – रामानन्दी,
राज निशान- चौकोर हरे झण्डे पर चन्द्रमा का निशान,
पर्वत – द्रोणांचल,
गुरू – व्यास,
राजध्वज – पंचरंगी,
नदी- गोमती,
मंत्र – गोपाल मंत्र,
हीरा - मदनायक ( इसे बाद में मुस्लिमों द्वारा कोहेनूर कहा गया – यह हीरा अब जा चुका है) ,
मणि – पारसमणि,
राजवंश का गुप्त चक्र – भूपत चक्र,
यंत्र – श्रीयंत्र,
महाविद्या – षोडशी महाविद्या
चन्दबरदाई के पृथ्वीराज रासों में राजपूतों के जिन 36 कुलों की कल्पना की गई थी उनमें तोमरों को दिल्ली के राजा के रूप में स्थान दिया गया था।. विक्रम संबत 1688 अर्थात सन् 1631 ई0 के रोहिताश्वगढ़ के मित्रसेन के शिलालेख में तोमरों को पाण्डवर्बंशी तथा सोमवंशी कहा गया है। मित्रसेन स्वयं तोमर था ओर ग्वालियर की तोमर राजवंश (Tomar Dynasty) शाखा का था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसे अपने पूर्वजों क॑ कुल का ज्ञान रहा होगा।
खड्गराय तोमर राजाओं का प्रामाणिक इतिहासकार माना जाता है। शाहजहां के राज्यकाल में उसने गोपाचल आख्यान लिखा था। उसने तोमरो की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए लिखा था -
अब सुनियौ तोंबर उत्पत्ति, छत्रिन में सो उत्तम जाति
कछ कछु कथा हेतु श्रुत भयो, सोमवंश अब वरन न लयो।।
पंडवंस जग तेज निदान, महारज बंसी बरवान
जो कछ सोमवंश नृप कहे, ते हरिवंस कथा में रहे।।
खडगराय के पूर्वज तोमरों के परम्परा से पुराहित चले आ रहे थे। निश्चित ही खडगराय के पास कुछ ऐसे प्रामाणिक दस्तावेज रहे होंगे जिनके आधार पर उसने तोमरों को पाडंववंशी और सोमवंशी लिखा होगा। खडगराय ने अपने ग्रंथ में तोमरों को अत्रि ऋषि से उत्पन्न माना हे
“बरनों कछ सुनी इहि भांति, रिसि अत्रव तनी उत्पत्ति।
स्पष्ट है जिस प्रकार पूर्व मध्यकाल के अन्य राजपूत राजवंश राजवंशो को किसी न किसी ऋषि के साथ जोड़ा गया है। ठीक उसी प्रकार तोमरों को भी ऋषि अत्रि के साथ जोड़ा गया है।
शिलालेखों और तत्कालीन संस्कृत ग्रंथों में तोमरो को तोमर लिखा गया है और हिंदी ग्रंथो में तोमरो को तूवर, तंवर, तोवर, कहा गया है तथा कुछ फ़ारसी ग्रंथो में इनको तूनर या तौर भी लिखा गया है। पश्चिम भारत के जैन विद्वानों ने इनको तुंग लिखा है।
एक तरफ जहां पृथ्वीराज रासों में राजपूतों के कुल ३६ कुलो का उल्लेख मिलता है। वहीं कक्यामखां रासा में जान कवि ने समस्त राजपूत कुलो को साढ़े तीन कुलों में बांटा है।
साढ़े तीन कुली कहे, रजपूतन को जात।
तोहि कहौँ समझाइ के, सुनि ले तिन को बात।
चाहूंवन तुंवर दुतीय, तीजो आहि पंवार।
आधे में सगरे कुली, साढ़े तीन विचार।
इस प्रकार तोमरों को राजपूत कुलों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त था। जिसके कुछ कारण हो सकते है की आज भी इनके अंदर दया, क्षमा, भरोसा, वीरता और बुद्धि ज्यादातर में अच्छी होती है।
एक नज़र तोमर राजवंश (Tomar Dynasty) की महत्वपूर्ण जानकारी पर -
- राजपूत : तोमर / तंवर / तुअर
- वंश: चंद्र वंश
- वंश: सोम या चंद्र - ययाति - पुरु - हस्ति - अजमीढ़ - कुरु - शांतनु - दुष्यंत - युधिष्ठिर - अर्जुन - परीक्षित - क्षेमाका - तुंगपाल - अनंगपाल
- शाखायें: पठानिया, जंजुआ, जर्राल, जंघारा, जाटू, जरैता, सतारा, रघु, इंद्रप्रस्थ, उत्तर कुरु, दिलली, नूरपुर, तंवरवाटी / तोरावाटी, ग्वालियर/भिंड/मुरैना (तौअरघार), कायस्थपाद, धौलपुर, तुरागढ़ के शासक।
- गोत्र: अत्रि / कश्यप
- वेद: यजुर्वेद
- कुलदेवी: योगेश्वरी (या जोगेश्वरी) माता, सारुंड माता
- इष्ट देव: श्रीकृष्ण
- कुल देवता: शिवजी
- मूल सीट (मूल खेड़ा): हस्तिनापुर
- शंख: दक्षिणावर्ती
- नागदा (युद्ध के लिए ढोल पीटना): रणजीत
- नदी: गोमती
- फ्लैगपोल (युद्ध में): फ्लैगपोल पर हनुमानजी
- सिंहासन, चंदवा और साइन का रंग: इस पर चंद्रमा के साथ स्क्वायर ग्रीन
- मंत्र: गायत्री मंत्र, गोपाल मंत्र
- तिलक: रामनंदी
- माला: रुद्राक्ष
- पर्वत श्रृंखला: द्रोणांचल
- पक्षी: गरुड़
- देवक (कबीले की वस्तु): गुलर ट्री, जिसे 'उडुम्बर' या 'उमबर' वृक्ष भी कहा जाता है।
एक नज़र दिल्ली के तोमर राजवंश (Tomar Dynasty) के राजाओ पर -
- अनंगपाल प्रथम 736 ई
- विशाल 752
- गंगेय 772
- पथ्वीमल 793
- जगदेव 812
- नरपाल 833
- उदयसंघ 848
- जयदास 863
- वाछाल 879
- पावक 901
- विहंगपाल 923
- तोलपाल 944
- गोपाल 965
- सुलाखन 983
- जसपाल 1009
- कंवरपाल 1025 (मसूद ने हांसी पर कुछ दिन कब्जा किया था 1038 में)
- अनंगपाल द्वितीय 1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख]])
- तेजपाल 1076
- महीपाल 1100
- दकतपाल (अर्कपाल भी कहा जाता है) 1115 A.D.-1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख)
आगे के लेख में
चम्बल और दिल्ली के तोमर वंश क्या एक ही है? - Tomar dynasty
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